वह दर्पण के सामने खड़ी हो गयी और बोली, “बता दर्पण ! मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने उसे निहारा और बोला, “आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
उसे गहन संताप हुआ और उसने क्रोधित होकर एक पत्थर उठा लिया और बोली, “बता दर्पण ! अब तूं मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने पत्थर देख लिया था, जोर से कहा, “आप बहुत खूबसूरत हैं" फिर धीरे से बोला “पर आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
वह प्रथम वाक्य सुनकर इतना विह्वल हुई की द्वितीय वाक्य को सुनी ही नही. और बेचारा दर्पण झूठ बोलने और टूटने से बच गया.
17 comments:
बहुत प्यारी, यथार्थ को बांचती रचना.
waah...lovely !
प्रभावी लघु कथा |
एक कठिन विधा ||
आभार सर जी ||
अच्छा हुआ जो दूसरा वाक्य नहीं सुना ... अच्छी लघु कथा
अच्छी लघु कथा है ''दर्पण ने सच भी बोल दिया और टूटनें से भी बच गया । सच्ची और अच्छी लघु कथा है । '' सुनीता जोशी ''
सच को सलीके से बोलना बेहतर है !
अच्छा हुआ जो दूसरी बात नहीं सुनी ...
अच्छी लघु कथा ....
साभार !!
जो चाहता है वही देखना सुनना पसंद करता है मनुष्य !
achchhi laghukatha..
man jo sunna chahta hai uske baad aage kuch nahi sunta...b !ahut dino baad aapke blog par ayai hoon...aabhar
सुन्दर बात कह दी आपने। इंसान तारीफ़ का सदा प्यासा है - और यह ही लालच उसे पल भर में अंधा कर देता है।
सच सुनने की ताब सब में कहाँ वे विरले ही होते हैं जो यह कर सकें। बहुत सुंदर कथा।
बहुत बहुत अच्छी रचना की प्रस्तुति।
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दर्पण झूठ न बोले
बहुत खूब!
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