दिनांक 7 मई 2010 को विश्व रेडक्रास दिवस के अवसर आयोजित काव्य गोष्ठी में मैनें दो कविताओं का पाठ किया जिसका प्रसारण आकाशवाणी से दिनांक 8 मई 2010 को किया गया. कविताएँ पढ़े और सुने :
तुम मुझे गोली मार दोतुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
और --
और मैनें प्रतिकार की जगह
परोस दी थी --
तुम्हारे सामने अपनी अस्मिता भी;
जब अपने वजूद की नींव पर
मैं तुम्हारी अट्टालिकाएँ बना रहा था
और खटकने लगी थी तुम्हें
मेरी झोपड़ी इसके बगल में;
मैं तब भी मरा था
जब तुमने
सूरज की रोशनी की आपूर्ति
मुझ जैसों के लिये
प्रतिबन्धित कर दी थी
और तुम्हारा कहा मानकर
सूरज तुम्हारे लिये ही रोशनी बिखेरने लगा था;
तुम समेटते रहे
मेरे अस्तित्व की तमाम संभावनाओं को
और मुझे मोम से ढक दिया था
अपलक देखते रहने को;
इससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
~~~
हद है भाई!
बोया पेड़ बबूल का
फिर क्यूँ आम ढूढते हो
जीजिविषा मरी पड़ी है
और तुम संग्राम ढूढ़ते हो
खुद ही कहकर खुद ही सुन लो
कौओं से करते कान की बातें, हद है भाई!
*
चप्पे-चप्पे पर कामी देखो
रिश्तों की नीलामी देखो
वर्तमान का पता नहीं पर
तुम तो अब आगामी देखो
हैवानों की बस्ती में आकर
करते हो तुम इंसान की बातें, हद है भाई!
*
किससे कहे वो
अपने जीवन की परेशानी को
नदियाँ तलाशने निकली हैं
अपने-अपने पानी को
इस नगरी में करते हो
आँगन और दालान की बातें, हद है भाई!
3 comments:
तुम समेटते रहे
मेरे अस्तित्व की तमाम संभावनाओं को
और मुझे मोम से ढक दिया था
अपलक देखते रहने को;
वाह!
दोनों ही बहुत अच्छी कवितायेँ हैं.
आवाज़ में सुनना भी अच्छा लगा.
आकाशवाणी से प्रसारण हुआ..बहुत बहुत बधाई.
bahut sundar rachnaaen hain...badhai
padhna achchha laga aur sunna to sone par suhaga ho gaya.. Aakashwani par prasarit hone ke liye badhai bhi sir.
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