Friday, December 10, 2010

'गरीब रथ' इतना गरीब क्यों है?

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विगत दिनों मैं अपने गृहनगर वाराणसी गया हुआ था. वहाँ से वापसी 'गरीब रथ' ट्रेन से हुई.  मुझे साईड मिडल बर्थ मिला. अब तक का सबसे दुरूह यात्रा साबित हुई. साईड मिडल बर्थ मायने खुद को डिब्बे में कैद करने जैसा था. शायद यह इकलौता ट्रेन है जिसमें साईड-मिडल बर्थ अब तक कायम है.  अस्तु, कहने को तो यह  वातानुकूलित ट्रेन है पर इसमें अन्य ट्रेनों के वातानुकूलित बोगी में मिलने वाली सुविधाएँ (!) यहाँ नदारद है. अन्य ट्रेनों में जहाँ बिछाने को बिस्तर और ओढने को कम्बल आदि सभी को उपलब्ध होता है, इस ट्रेन में नहीं है. बिस्तर अलग से किराया देने पर मिलता है. किराया देकर भी यह बिस्तर पा लेना प्लासी युद्ध जीतने जैसा ही दुरूह कार्य है, क्योकि यह भी सीमित मात्रा में उपलब्ध है. कुछ दृश्य मैनें इस जद्दोजहद का मोबाईल कैमरे से लिया है :

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आखिर ऐसा क्यों ? 

Tuesday, December 7, 2010

एक अघोषित ब्लागर मिलन वाराणसी में अरविन्द मिश्रा जी के सौजन्य से ..

दिनांक 4 दिसम्बर को मैं वाराणसी (अपने गृह नगर) में था.  मेरा सौभाग्य है कि अरविन्द मिश्रा जी ने अपने आवास पर वाराणसी के मूर्धन्य ब्लागरों को आमंत्रित किया और एक संक्षिप्त ब्लागर मिलन का आयोजन कर दिया. यह ब्लागर मिलन संक्षिप्त इस मायने में नहीं था कि हम कम समय तक वार्तालाप किये वरन लगभग दो घंटे तक गूफ़्तगूरत रहे. हाँ संक्षिप्त इस मायने में जरूर थी कि हम संख्यात्मक रूप से संक्षिप्त थे ( कुल छ: ). फिर भी हम कम नहीं माने जा सकते हैं क्योकि वाराणसी के सिर्फ चार ही यदि तन्मयता से जुट जाये तो मुकम्मल होते हैं. अस्तु .. यह मिलन एक यादगार मिलन बन गया. कुछ संकल्पों कुछ विकल्पों पर वार्ता हुई. विशेष रूप से अरविन्द मिश्रा जी से बातचीत और उनकी जिन्दादिली प्रभावित कर गई. देवन्द्र पाण्डे जी से सार्थक और आत्मीय पहचान (ब्लाग कथ्यों से ईतर), उत्तमा जी की उन्मुक्त हँसी, अभिषेक आर्जव जी की मुस्कान और डाँ उमाशंकर चतुर्वेदी जी  का गाम्भीर्य कौन भूल सकता है भला.  भाभी जी (श्रीमती अरविन्द मिश्रा) का आतिथ्य भाव की चुगली तो चित्र कर ही देंगे. खिलाने में आप और मिश्रा जी पीछे नहीं रहे और खाने में हम सभी संकोच त्याग कर चुके थे और पीछे नहीं. बाकी मैं कुछ कहूँ उससे बेहतर है कि आप चित्रो की जुबानी ही सुनें :

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श्रीमती अरविन्द मिश्रा (क्षमा करें नाम पूछने का दु;साहस नहीं कर पाया था)

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कहाँ ध्यान है देवेन्द्र जी

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फोटो तो लो अभिषेक

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कैसा लगा?

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बस अब नहीं

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गूफ्तगूरत

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चलो अब चलते हैं

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क्लिक तो करो

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क्रमश: -> मैं (एम वर्मा), श्रीमती अरविन्द मिश्रा, उत्तमा जी, अभिषेक आर्जव जी, देवेन्द्र पाण्डे जी, अरविन्द मिश्रा जी, डाँ उमाशंकर चतुर्वेदी जी 

Wednesday, November 24, 2010

मंगतू और चींटी

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मंगतू को देशाटन का शौक चर्राया. वह एक पहाड़ी क्षेत्र में गया. वहाँ एक पहाड़ी पर एक चींटी को चढ़ते देखकर मंगतू को आश्चर्य हुआ. 'इतनी छोटी सी चींटी और यह जुर्रत .. कहीं गिर गयी तो हाथ-पांव तुड़वायेगी. उससे रहा नहीं गया, उसने चींटी से पूछ ही लिया.

मंगतू : तुम्हें इतनी ऊँचाई पर चढ़ते हुए डर नहीं लगता.

चींटी : डर क्यों लगेगा?

मंगतू : तुम इतनी छोटी सी जो हो.

चींटी :  छोटी हूँ तो क्या हुआ ! मुझे तो चोटी तक पहुँचना है.

मंगतू : चोटी पर पहुँचकर क्या करोगी?

चींटी : कुछ नहीं खुले में हवा खाऊँगी और फिर वापस लौट आऊँगी.

मंगतू आश्वस्त हो गया. कद और आकार से हौसले का आँकलन नहीं किया जा सकता. पक्का ईरादा और लगन ही मंजिल की राह दिखाते हैं.

मंगतू भी अब आत्मविश्वास से भर गया है.

Sunday, November 21, 2010

अपना एक स्टाईल रक्खो

अपना एक स्टाईल रक्खो

अधरों पर स्माईल रक्खो

.

दिखना हो जो धीर-गंभीर

पहलू में एक फाईल रक्खो

.

ये दुनिया जीने नहीं देगी

नज़रों मे मिसाईल रक्खो

.

बिखर रहे हो क्यूँ आखिर

खुद को कम्पाईल रक्खो

.

खतरा है खो जाने का तो

संग अपने मोबाईल रक्खो

Wednesday, November 3, 2010

अंकल ! एक दर्जन अंडे दे दीजिये ~~

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मंगतू की माँ ने उससे अंडे लाने को कहा. वह दुकान पर गया और दुकानदार से अंडे क्रय के सन्दर्भ में जो वार्ता हुई वह आप भी पढ़िये :

मंगतू : अंकल क्या आपके यहाँ अंडे हैं?

दुकानदार : हाँ हैं.

मंगतू : क्या रेट हैं?

दुकानदार : 24 रूपये दर्जन

मंगतू : अंकल ! एक दर्जन अंडे दे दीजिये.

दुकानदार : बेटे ! यहाँ आकर खुद ही अंडे गिनकर ले लो. दरअसल मैं अंडों को हाथ नहीं लगाता.

इस बात पर मंगतू हैरान-परेशान सोचने लगा आखिर अंकल अंडे बेचते हैं तो छूते क्यों नहीं हैं !!!!!!!!!!

Friday, October 29, 2010

ईलाज ठीक चल रहा है ~~

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मंगतू बीमार हो गया. आनन-फानन में उसे अस्पताल पहुँचाया गया. अस्पताल में अब उसके स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है.  जब डाँक्टर से उसके बीमारी के बारे में पूछा गया तो डाँक्टर ने बताया कि :

'मंगतू के शरीर के आंतरिक अवयव मिलावटी भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने और पचाने के आदी हो चुके हैं. शायद उसने किसी दिन विशुद्ध भोजन कर लिया होगा और बीमार हो गया.'

यह पूछने पर कि अस्पताल में आकर इतनी जल्दी कैसे ठीक हो गया तो डाँक़्टर ने जो बताया वह कम चौकाने वाला नहीं है :

'हमने यहाँ पर उसे एक नकली और मिलावटी इंजेकशन  लगा दिया और उसके भोजन को मिलावटी बना दिया गया है साथ ही प्रदूषित आक्सीजन का मास्क भी लगाया गया है.'

मुझे लगा ईलाज ठीक चल रहा है.

Sunday, October 24, 2010

लड़की छेड़ने के आरोप में मंगतू फिर पिटा ... @#$%ं&

 

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मंगतू आज फिर पिट गया. इस बार फिर उसे लड़की छेड़ने का दंड मिला.  जब मैनें उससे उसकी इस हरकत के बारे में पूछा तो उसने जो बताया आप भी सुन लीजिये : 'सरजी! मेरी कोई गलती नहीं है. मैने तो बस स्टैंड पर एक लड़की को छुआ ही था कि लोग पीटने लगे.' मेरे यह पूछने पर कि तुमने लड़की को छुआ क्यों? तो उसने बताया कि उसके टी-शर्ट पर लिखा हुआ था – Touch Me इसलिए मैनें उसे छू दिया.

आप ही बताईये बेचारे मंगतू की गलती है क्या?

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विश्व रेडक्रास दिवस

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विश्व रेडक्रास दिवस पर कविता पाठ 7 मई 2010

हिन्दी दिवस : काव्य पाठ

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हिन्दी दिवस 2009

राजस्थान पत्रिका में 'यूरेका'

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