विगत दिनों मैं अपने गृहनगर वाराणसी गया हुआ था. वहाँ से वापसी 'गरीब रथ' ट्रेन से हुई. मुझे साईड मिडल बर्थ मिला. अब तक का सबसे दुरूह यात्रा साबित हुई. साईड मिडल बर्थ मायने खुद को डिब्बे में कैद करने जैसा था. शायद यह इकलौता ट्रेन है जिसमें साईड-मिडल बर्थ अब तक कायम है. अस्तु, कहने को तो यह वातानुकूलित ट्रेन है पर इसमें अन्य ट्रेनों के वातानुकूलित बोगी में मिलने वाली सुविधाएँ (!) यहाँ नदारद है. अन्य ट्रेनों में जहाँ बिछाने को बिस्तर और ओढने को कम्बल आदि सभी को उपलब्ध होता है, इस ट्रेन में नहीं है. बिस्तर अलग से किराया देने पर मिलता है. किराया देकर भी यह बिस्तर पा लेना प्लासी युद्ध जीतने जैसा ही दुरूह कार्य है, क्योकि यह भी सीमित मात्रा में उपलब्ध है. कुछ दृश्य मैनें इस जद्दोजहद का मोबाईल कैमरे से लिया है :
आखिर ऐसा क्यों ?