मंगतू को देशाटन का शौक चर्राया. वह एक पहाड़ी क्षेत्र में गया. वहाँ एक पहाड़ी पर एक चींटी को चढ़ते देखकर मंगतू को आश्चर्य हुआ. 'इतनी छोटी सी चींटी और यह जुर्रत .. कहीं गिर गयी तो हाथ-पांव तुड़वायेगी. उससे रहा नहीं गया, उसने चींटी से पूछ ही लिया.
मंगतू : तुम्हें इतनी ऊँचाई पर चढ़ते हुए डर नहीं लगता.
चींटी : डर क्यों लगेगा?
मंगतू : तुम इतनी छोटी सी जो हो.
चींटी : छोटी हूँ तो क्या हुआ ! मुझे तो चोटी तक पहुँचना है.
मंगतू : चोटी पर पहुँचकर क्या करोगी?
चींटी : कुछ नहीं खुले में हवा खाऊँगी और फिर वापस लौट आऊँगी.
मंगतू आश्वस्त हो गया. कद और आकार से हौसले का आँकलन नहीं किया जा सकता. पक्का ईरादा और लगन ही मंजिल की राह दिखाते हैं.
मंगतू भी अब आत्मविश्वास से भर गया है.
6 comments:
आत्मविश्वास से भरने वाली अच्छी पोस्ट
बहुत सार्थक..
बहुत सार्थक और प्रेरक कथा .
नमस्कार जी !
बहुत सुन्दर .... बेहतरीन
आत्मविश्वास से भरने वाली अच्छी पोस्ट
प्रेरक लघु कथा। बधाई।
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