Wednesday, November 24, 2010

मंगतू और चींटी

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मंगतू को देशाटन का शौक चर्राया. वह एक पहाड़ी क्षेत्र में गया. वहाँ एक पहाड़ी पर एक चींटी को चढ़ते देखकर मंगतू को आश्चर्य हुआ. 'इतनी छोटी सी चींटी और यह जुर्रत .. कहीं गिर गयी तो हाथ-पांव तुड़वायेगी. उससे रहा नहीं गया, उसने चींटी से पूछ ही लिया.

मंगतू : तुम्हें इतनी ऊँचाई पर चढ़ते हुए डर नहीं लगता.

चींटी : डर क्यों लगेगा?

मंगतू : तुम इतनी छोटी सी जो हो.

चींटी :  छोटी हूँ तो क्या हुआ ! मुझे तो चोटी तक पहुँचना है.

मंगतू : चोटी पर पहुँचकर क्या करोगी?

चींटी : कुछ नहीं खुले में हवा खाऊँगी और फिर वापस लौट आऊँगी.

मंगतू आश्वस्त हो गया. कद और आकार से हौसले का आँकलन नहीं किया जा सकता. पक्का ईरादा और लगन ही मंजिल की राह दिखाते हैं.

मंगतू भी अब आत्मविश्वास से भर गया है.

6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आत्मविश्वास से भरने वाली अच्छी पोस्ट

Udan Tashtari said...

बहुत सार्थक..

प्रतिभा सक्सेना said...

बहुत सार्थक और प्रेरक कथा .

#vpsinghrajput said...

नमस्कार जी !
बहुत सुन्दर .... बेहतरीन

अरुण चन्द्र रॉय said...

आत्मविश्वास से भरने वाली अच्छी पोस्ट

निर्मला कपिला said...

प्रेरक लघु कथा। बधाई।

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