मंगतू की माँ ने उससे अंडे लाने को कहा. वह दुकान पर गया और दुकानदार से अंडे क्रय के सन्दर्भ में जो वार्ता हुई वह आप भी पढ़िये :
मंगतू : अंकल क्या आपके यहाँ अंडे हैं?
दुकानदार : हाँ हैं.
मंगतू : क्या रेट हैं?
दुकानदार : 24 रूपये दर्जन
मंगतू : अंकल ! एक दर्जन अंडे दे दीजिये.
दुकानदार : बेटे ! यहाँ आकर खुद ही अंडे गिनकर ले लो. दरअसल मैं अंडों को हाथ नहीं लगाता.
इस बात पर मंगतू हैरान-परेशान सोचने लगा आखिर अंकल अंडे बेचते हैं तो छूते क्यों नहीं हैं !!!!!!!!!!
11 comments:
PATA NAHI VERMA JI....
PAR SOCHNE WALI BAAT HAI....
Chalo kam se kam Ancle ne ye nahi kaha ki abe main kya "Murgi" hun jo ande dungi.
तारकेश्वर जी की बात में दम है :)
आपको सपरिवार प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
उल्फ़त के दीप
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
सोचने वाली बात है ...
ये बात तो सच है मै जब मुंबई में थी तो वाहा बाजु में एक गुजराथी की दुकान थी ...
यही किस्सा था अगर उनका कामवाल लड़का है तो वह गिनकर देता था, वरना दुकानदार साहब बोलते थे गिनकर आप ही ले लिजिये मै हाथ नहीं लगता ....?
दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
this is business Son . Shubh Deepawali.
दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
चिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
सादर,
मनोज कुमार
दोहरे व्यक्तित्व मे जीते हैं लोग। अच्छी प्रस्तुति। आभार।
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