लगता है फिट हो गई गोटी, वाह भई वाह
सांझ ढले अंगूर की बेटी, वाह भई वाह
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मुर्ग मुसल्लम की दावत खाने दौड़े आये
दाँत नहीं पर नोचे बोटी, वाह भई वाह
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पानी-पानी चिल्लाते हो प्यासे अधरों से
देखो खुला छोड़ दिया टोटी, वाह भई वाह
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कल दिखे गुलछर्रे उड़ाते कनाट प्लेस में
कहते हो किस्मत है खोटी, वाह भई वाह
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अब क्यों माँगते सीढ़ी, किसके कहने पर
चढ़ गये तुम ऊँची चोटी, वाह भई वाह
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सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो
एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह
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सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
17 comments:
hmmmmm achhi koshish hai sir..shuru ke do sher achhe lage...
सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
sacahi byaan kar di verma sahab
सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
बहुत ही अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ! आज के युग की मानसिकता पर चुटीला प्रहार ! आभार !
....वाह भई वाह .... बहुत खूब!!!
सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
बहुत सुन्दर
वाह भई वाह
"पानी-पानी चिल्लाते हो प्यासे अधरों से
देखो खुला छोड़ दिया टोटी, वाह भई वाह"
हमारी तरफ से भी "वाह भई वाह"
कल दिखे गुलछर्रे उड़ाते कनाट प्लेस में
कहते हो किस्मत है खोटी, वाह भई वाह
वाह चाचा वाह...बेहतरीन रचना बधाई
सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो
एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह
waah bhai waah....
.सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
बहुत सुन्दर वर्मा जी। वाह भई वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सार्थक शीर्षक के साथ.... बहुत अच्छी लगी यह संवेदनशील कविता.....
सोये रहे, जब तक लूटा जा रहा था खजाना ,
अब कहते है हाथ आ जाए भागते चोर की लंगोटी , वाह भाई वाह !
मज़ा आ गया ...वाकई चेहरे पर मुस्कान आ गयी वर्मा जी !
वाह भाई वाह !
वर्मा जी,
वाह जी वाह!
वाराणसी का छात्र ही इतना संवेदन शील हो सकता है
वाह भई वाह !!!!
www.sahitya.merasamast.com
Vaah ji vaah ...
aap ki gazal bahut hi achee hai ... aapke vyang ka jawaab nahi ...
halke shabdon se hi gahree baat kahtee rachna
सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो
एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह
यह सौंदर्य भी अलौकिक होगा,दर्शनीय होगा।
उम्दा काव्य के लिए आभार
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