Monday, April 26, 2010

दाँत नहीं पर नोचे बोटी ~~

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लगता है फिट हो गई गोटी, वाह भई वाह

सांझ ढले अंगूर की बेटी, वाह भई वाह

.

मुर्ग मुसल्लम की दावत खाने दौड़े आये

दाँत नहीं पर नोचे बोटी, वाह भई वाह

.

पानी-पानी चिल्लाते हो प्यासे अधरों से

देखो खुला छोड़ दिया टोटी, वाह भई वाह

.

कल दिखे गुलछर्रे उड़ाते कनाट प्लेस में

कहते हो किस्मत है खोटी, वाह भई वाह

.

अब क्यों माँगते सीढ़ी, किसके कहने पर

चढ़ गये तुम ऊँची चोटी, वाह भई वाह

.

सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो

एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह

.

सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर

छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह

17 comments:

स्वप्निल तिवारी said...

hmmmmm achhi koshish hai sir..shuru ke do sher achhe lage...

संजय भास्‍कर said...

सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह

sacahi byaan kar di verma sahab

Sadhana Vaid said...

सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर

छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह

बहुत ही अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ! आज के युग की मानसिकता पर चुटीला प्रहार ! आभार !

कडुवासच said...

....वाह भई वाह .... बहुत खूब!!!

Razia said...

सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह
बहुत सुन्दर
वाह भई वाह

Unknown said...

"पानी-पानी चिल्लाते हो प्यासे अधरों से
देखो खुला छोड़ दिया टोटी, वाह भई वाह"

हमारी तरफ से भी "वाह भई वाह"

विनोद कुमार पांडेय said...

कल दिखे गुलछर्रे उड़ाते कनाट प्लेस में
कहते हो किस्मत है खोटी, वाह भई वाह

वाह चाचा वाह...बेहतरीन रचना बधाई

दिलीप said...

सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो

एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह

waah bhai waah....

श्यामल सुमन said...

.सौदागर सपनों के तुम अपनों के खातिर
छीन ली गरीब की रोटी, वाह भई वाह

बहुत सुन्दर वर्मा जी। वाह भई वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सार्थक शीर्षक के साथ.... बहुत अच्छी लगी यह संवेदनशील कविता.....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सोये रहे, जब तक लूटा जा रहा था खजाना ,
अब कहते है हाथ आ जाए भागते चोर की लंगोटी , वाह भाई वाह !

Satish Saxena said...

मज़ा आ गया ...वाकई चेहरे पर मुस्कान आ गयी वर्मा जी !
वाह भाई वाह !

संजय @ मो सम कौन... said...

वर्मा जी,
वाह जी वाह!

alka mishra said...

वाराणसी का छात्र ही इतना संवेदन शील हो सकता है
वाह भई वाह !!!!

www.sahitya.merasamast.com

दिगम्बर नासवा said...

Vaah ji vaah ...
aap ki gazal bahut hi achee hai ... aapke vyang ka jawaab nahi ...

दीपक 'मशाल' said...

halke shabdon se hi gahree baat kahtee rachna

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सौन्दर्य प्रतियोगिता में आये हैं देखो तो
एक आँख बड़ी दूजी छोटी, वाह भई वाह


यह सौंदर्य भी अलौकिक होगा,दर्शनीय होगा।
उम्दा काव्य के लिए आभार

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