Tuesday, August 25, 2009

मंजिल की तलाश ~~



वह मंजिल की ऑर बढ़ा जा रहा था। उसे उसके गंतव्य की खुशबू भी आने लगी थी। मन में हुलास लिए वह गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रहा था। कितना उमंग था उसे अपनों से मिलने का ! -- पहुँचने से पहले वह थोड़ा सुस्ता लेना चाहता था। पथ की थकन को शांत करने के निमित्त पल भर को एक चौराहे पर रूका। मुँह-हाथ धोकर आगे बढ़ने से पहले एहतिहातन उसने एक पथिक से रास्ता पूछ लिया। उसने उसे रास्ता बताया। उसने उसका धन्यवाद किया और ---
---- उसके बताये रास्ते पर चल पड़ा। --------
और फ़िर वह आज तक रास्तों पर भटक रहा है।
वह आज भी अपनी मंजिल तलाश रहा है।
-------- मंजिल तलाश रहा है।

13 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

manzil mil kar rahegi..
talash jaari rahe to..
shubhkamnaayein..

स्वप्न मञ्जूषा said...

ya fir manzil kabhi nahi milti
shayad ise hi 'Pragati' kahte hain...

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दर .........रचना गहरे भाव लिये हुये........

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और नए अंदाज़ के साथ आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी ! आपको मंजिल ज़रूर मिलेगी !

मुकेश कुमार तिवारी said...

आदरणीय वर्मा साहब,

यहाँ आकर आपके साहित्य की गहराई का पता चलता है कि रास्ता पुछने के बाद मुसाफिर भटकता रह गया।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Mahfooz Ali said...

laghu katha ke roop mein sateek rachna.... gahre bhaav ke saath........

shubhkaamnayen.....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

laghu katha ke roop mein sateek rachna.... gahre bhaav ke saath........

shubhkaamnayen.....

Razia said...

आप किसी राहगीर से रास्ता मत पूछिएगा रास्ते से तब नही भटकेंगे.

Prem Farukhabadi said...

verma ji ,
bahut khoob kaha hai aapne.badhai!!

Shilpa Garg said...

Mr. Verma, there is a surprise for you on my blog!! :)

शरद कोकास said...

वो क्या राह दिखायेंगे मुझको जिन्हे खुद अपना पता नही है

स्वप्न मञ्जूषा said...

Verma ji,
bahut dino se aapne kuch likha nahi hai.
kya baat hai ?

लता 'हया' said...

mujhe pahali pahli dua dene wale aap hein DUA CHAHIYE POST PAR to bahut bahut shukria.

manzil ki talaash accha tanz hai.

happy dashera.

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