
वह मंजिल की ऑर बढ़ा जा रहा था। उसे उसके गंतव्य की खुशबू भी आने लगी थी। मन में हुलास लिए वह गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रहा था। कितना उमंग था उसे अपनों से मिलने का ! -- पहुँचने से पहले वह थोड़ा सुस्ता लेना चाहता था। पथ की थकन को शांत करने के निमित्त पल भर को एक चौराहे पर रूका। मुँह-हाथ धोकर आगे बढ़ने से पहले एहतिहातन उसने एक पथिक से रास्ता पूछ लिया। उसने उसे रास्ता बताया। उसने उसका धन्यवाद किया और ---
---- उसके बताये रास्ते पर चल पड़ा। --------
और फ़िर वह आज तक रास्तों पर भटक रहा है।
वह आज भी अपनी मंजिल तलाश रहा है।
-------- मंजिल तलाश रहा है।
13 comments:
manzil mil kar rahegi..
talash jaari rahe to..
shubhkamnaayein..
ya fir manzil kabhi nahi milti
shayad ise hi 'Pragati' kahte hain...
बहुत ही सुन्दर .........रचना गहरे भाव लिये हुये........
बहुत ही सुंदर और नए अंदाज़ के साथ आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी ! आपको मंजिल ज़रूर मिलेगी !
आदरणीय वर्मा साहब,
यहाँ आकर आपके साहित्य की गहराई का पता चलता है कि रास्ता पुछने के बाद मुसाफिर भटकता रह गया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
laghu katha ke roop mein sateek rachna.... gahre bhaav ke saath........
shubhkaamnayen.....
laghu katha ke roop mein sateek rachna.... gahre bhaav ke saath........
shubhkaamnayen.....
आप किसी राहगीर से रास्ता मत पूछिएगा रास्ते से तब नही भटकेंगे.
verma ji ,
bahut khoob kaha hai aapne.badhai!!
Mr. Verma, there is a surprise for you on my blog!! :)
वो क्या राह दिखायेंगे मुझको जिन्हे खुद अपना पता नही है
Verma ji,
bahut dino se aapne kuch likha nahi hai.
kya baat hai ?
mujhe pahali pahli dua dene wale aap hein DUA CHAHIYE POST PAR to bahut bahut shukria.
manzil ki talaash accha tanz hai.
happy dashera.
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