Sunday, July 1, 2012

और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा)



वह दर्पण के सामने खड़ी हो गयी और बोली, “बता दर्पण ! मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने उसे निहारा और बोला, “आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
उसे गहन संताप हुआ और उसने क्रोधित होकर एक पत्थर उठा लिया और बोली, “बता दर्पण ! अब तूं मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने पत्थर देख लिया था, जोर से कहा, “आप बहुत खूबसूरत हैं" फिर धीरे से बोला “पर आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
वह प्रथम वाक्य सुनकर इतना विह्वल हुई की द्वितीय वाक्य को सुनी ही नही. और बेचारा दर्पण झूठ बोलने और टूटने से बच गया.




Monday, May 21, 2012

पीकर बेचारा किसी नाले में पड़ा होगा ….



शाम हो चुकी है भला कैसे खड़ा होगा
पीकर बेचारा किसी नाले में पड़ा होगा
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उसकी मुस्कुराहट कर रही है चुगली
शादीशुदा नहीं शर्तियाँ वह 'छड़ा' होगा
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आज फिर उसका चेहरा सूजा हुआ है
किसी ‘नाजनीन’ ने थप्पड़ जड़ा होगा
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नाक कट गयी है, आँख कहीं और होगा
किसी बिजली के खम्भे से लड़ा होगा
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‘तौहीन’ इसके लिए शान -ओ-शौकत है
इसके जेहन में शायद चिकना घड़ा होगा

Sunday, May 13, 2012

जो नंगा है , वही चंगा है .....


(वैधानिक चेतावनी : यहाँ शारीरिक नंगई को कोई स्थान नहीं है)
नंगा होने का सुख नंगा ही जान पायेगा. वस्तुत: नंगई एक नैसर्गिक गुण है जो अर्जित भी की जा सकती है और विरासत में भी मिल सकती है. नंगई के लिए आवश्यक संसाधन है माँ-बहन की गालियाँ. यह भी साधना से अर्जित की जाती है. वैसे भी आजकल के सीरियलों और तथाकथित ‘रियलिटी शोज’ में यह बखूबी प्रयोग की जाती है और वहाँ से भी अर्जित की जा सकती है.
समाज के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें यह अतिआवश्यक गुण की श्रेणी में आते हैं, उनमें से कुछ प्रमुख हैं : राजनीति, ठेकेदारी, भाईगिरी, उठाईगिरी आदि. प्रथम दो क्षेत्रों (राजनीति, ठेकेदारी) में यह थोड़े परिमार्जित रूप में परिलक्षित होती है पर अन्य दो क्षेत्रों (भाईगिरी, उठाईगिरी) में यह अपने नैसर्गिक रूप में ही कारगर है.
यहाँ बाथरूम या हरम में नंगे को नंगई के रूप में नहीं देख सकते. क्योंकि ऐसा करने से शायद ही कोई नंगई के इलज़ाम से बच पाये. यहाँ की चर्चा में केवल सार्वजनिक रूप से नंगे ही शामिल हैं. सार्वजनिक नंगई में लिप्त आमतौर पर वैयक्तिक नंगई से परे भी होते हैं.
नंगई को साध चुके समाज के हर क्षेत्र में अपने कार्य संपादन में इसका चतुराई से प्रयोग करते हैं. कई तो नंगई से अपने कार्य को संपन्न करवाने के उपरांत नंगई के खिलाफ प्रवचन देते दिख सकते हैं, जैसा आमतौर पर राजनीति में देखा जा सकता है.
नंगई का असली स्वरूप इस उदाहरण से स्पष्ट हो सकता है :
दृश्य : परीक्षास्थल (काल्पनिक)
आब्जरवर ने सामूहिक नकल पकड़ लिया और सेंटर के खिलाफ पत्र तैयार कर ही रहा है कि तभी एक लड़की (प्रायोजित) आब्जरवर के खिलाफ नक़ल चेकिंग के दौरान अनावश्यक रूप से स्पर्श, यानी छेडछाड का आरोप लगाने वाला पत्र लेकर आ गयी’
निष्कर्ष : आब्जरवर भी वही है, कोई शिकायत भी नहीं हुई, सभी सानन्द हैं और नक़ल जारी है.
मेरे एक मित्र का पुत्र (मात्र ४ वर्षीय) नैसर्गिक रूप से अर्जित किये हुए गुण का बखूबी प्रदर्शन किया. जब वे बाजार में थे तो उनका पुत्र एक खिलौने की जिद कर बैठा और मना करने पर वहीं नंगा हो गया. मजबूरन वह खिलौना उन्हें खरीदना ही पड़ा.
अस्तु, ये उदाहरण साबित करने को पर्याप्त हैं कि नंगई एक सात्विक ही नहीं कारगर गुण है.
कहना ही पडेगा “जो नंगा है,  वही चंगा है”

Monday, April 30, 2012

तुम्हारी आशिकी शक के दायरे में है …


पीये और पिलाए नहीं तो क्या किया?
पीकर भी जो लड़खडाए नहीं, तो क्या किया?
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तुम्हारी आशिकी शक के दायरे में है
नाज़नीन से पिटकर आये नहीं, तो क्या किया?
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शादीशुदा के लिए तो तोहफा है बेलन
बीबी से आजतक खाए नहीं, तो क्या किया?
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सियासत का दंभ भरते हो, कच्चे हो पर
घोटालों के लिस्ट में आये नहीं, तो क्या किया?
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माना उठ गयी थी महफ़िल जहां गए थे
और किसी बारात में खाए नहीं, तो क्या किया?
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कोई और क्यों न उठा लेगा अमानत
बुलाने पर भी तुम आये नहीं, तो क्या किया?
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माशूका मिली किसी और के पहलू में
फिर भी तुम तिलमिलाए नहीं, तो क्या किया?
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माना कि तुमने स्वर साधना नहीं किया
बाथरूम में भी जो गाये नहीं, तो क्या किया?
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नफ़रत है तुम्हें नहाने से जगजाहिर है
शादी के दिन भी नहाये नहीं, तो क्या किया?

Friday, April 6, 2012

आजकल वे मुझसे नाराज़ हैं …

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आजकल वे मुझसे नाराज़ हैं. यूँ तो मैं कभी नाराज़ नहीं होता और न किसी की नाराजगी का अंदाज़ा होता है. पर पत्नी के मामले में बात अलग है. वे जब भी मुझे उलाहनों से वंचित रखती हैं मैं समझ लेता हूँ कि नाराज़ हैं. नाराजगी का कोई कारण हो जरूरी नहीं है. गर्मी ज्यादा हो तो वे मुझपर नाराज़ हो सकती हैं. बेटा न पढ़े तो, और पढने बैठा रहे तो वे नाराज़ हो सकती हैं. विद्यालय से मैं जल्दी आ जाऊ तो; देर से आऊँ तो; भूख न लगने पर न खा पाऊँ तो; भूख लगने पर ज्यादा खा लूं तो वे नाराज़ हो सकती हैं.

एक बार मैंने उनके माथे पर लगे सूक्ष्म बिंदी पर ध्यान नहीं दिया तो माथे पर बल पड़ गया था. वैसे बिंदी पर ध्यान न देने को मैं अपनी गलती मानता हूँ. बहुत समझाया कि बिंदी छोटी होने के कारण निगाह में नहीं आ पाई वरना मैं तो बिंदियों पर बहुत ध्यान देता हूँ. बस फिर नया मसला खड़ा हो गया. ‘किस-किस की बिंदियों पर ध्यान देते हो.’ तौबा- तौबा बिना बिंदी के काम नहीं चल सकता क्या?

एक बार उनके ही आदेश पर टेबुल पर चढ़कर जाले साफ़ कर रहा था और अचानक पता नहीं कैसे टेबुल से फिसल कर गिर गया. टांग टूट गयी, प्लास्टर लगने के बाद पहली उलाहना यही थी कि जरूर तुम टेबल पर चढ़कर पड़ोसी के घर में झांक रहे होगे, तभी ध्यान बंटा होगा और गिर गए होगे.

सार्वभौमिक है यह समस्या. मैं स्वीकार कर रहा हूँ तो आप मुझ पर हँस रहे होंगे या सहानुभूति की टिप्पणियाँ तैयार कर रहे होंगे. पर गिरेबान में झाँक कर जरूर देख लें. कहीं यह स्थिति आपकी भी तो नहीं है. वैसे पत्नी की नाराजगी से मुझे कोई नाराजगी नहीं है. क्योंकि इस नाराजगी के बाद जो मनाने और फिर अंततोगत्वा उनके मान जाने पर जो सुख मिलता है वह अवर्णनीय है.

फिलहाल तो मैं अब उन्हें मनाने के उपाय सोचने में अपने चिंतन की समस्त क्षमता का उपयोग करूँगा और मना ही लूंगा, इसलिए अब विराम लेता हूँ.

धन्यवाद !

Thursday, June 2, 2011

यह मेरे नाक का सवाल है ..’

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‘यह मेरे नाक का सवाल है ..’ अक्सर यह जुमला मुझे परेशान करता रहा है. आखिर नाक का वह सवाल है क्या? क्या नाक सवाल भी करता है? और अगर करता है तो सवालों से लगातार घिरे होने के बावजूद नाक के सवाल के प्रति हम इतने सचेत क्यों रहते हैं? वैसे जहाँ तक मैं जानता हूँ उसके अनुसार, “नाक रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाने वाला छिद्र है। इससे हवा शरीर में प्रवेश करती है जिसका उपयोग श्वसन क्रिया में होता है। नाक द्वारा सूँघकर किसी वस्तु की सुगंध को ज्ञात किया जा सकता है।“

वैसे तो नाक आँखो के मध्य स्थित होता है, पर यह सर्वदा आँखों से ओझल ही होता है. इसीलिये इसकी ऊँचाई और सलामती की खबर दूसरे ही रखते हैं. बिना नाक वाला भी हमेशा दूसरों की निगाह में स्वयं को नाक वाला साबित करने के प्रयत्न में लगा रहता है. क्योकि नाक मानव शरीर में सबसे ऊँचा स्थल होता है (यदि स्थितियाँ सामान्य हों तो) अत: इसके क्षतिग्रस्त होने की; कटने की सम्भावना सर्वदा बरकरार रहती है. यूँ तो मक्खियों के लिये यह प्रिय स्थल है पर लोग नाक पर मक्खियों का बैठना बिलकुल पसन्द नहीं करते हैं.

यूँ तो नाक कई प्रकार के होते हैं, पर ऊँची नाक वालों की नाक सबसे नाजुक होती है. इसके कटने की सम्भावना बनी रहती है, फिर भी लोग नाक ऊँची रखना ही पसन्द करते हैं. नाक ऊँची रखने का शौक मानव सभ्यता में बहुत प्राचीन है. रामायण, महाभारत से लेकर अन्य अनेक महायुद्धों का सम्बन्ध इसी नाक से है. नाक की सलामती का यह शौक विकृति के चरम तक पहुँच चुका है. तथाकथित ‘आनर’ का सम्बन्ध नाक से ही है जिसके कारण मानव सभ्यता (!!) को ‘आनर कीलिंग’ तक का सफर करना पड़ता है.

सौन्दर्य का आकलन भी नाक से ही प्रारम्भ होता है. ‘नाक-नक्श’ देखकर ही लोग रिश्ते बनाते हैं, फब्तियाँ कसते हैं या छेड़ने तक का दुस्साहस कर जाते हैं. छेड़ने की प्रक्रिया में ‘छिड़े’ और ‘छेड़े’ दोनों की नाक को खतरा पैदा हो जाता है और इसके कटने की सम्भावना बन जाती है.

नाक का सीधा सम्बन्ध नकेल से है. इसकी अंग्रेजी String है. इसकी ख़ासियत है कि इसके एक सिरे का सम्बन्ध तो नाक से होता है पर दूसरे सिरे का नियंत्रण किसी और के हाथ में होता है. आम भारतीयों की नकेल उनकी पत्नियों के हाथ में है पर मजेदार बात है कि उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं है. (अपवादों को छोड़कर)

आप सबकी नाक सलामत रहे. आपने इस आलेख को पढ़कर मेरी नाक रख ली. धन्यवाद !

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Thursday, December 16, 2010

पेट्रोल की कीमत नहीं बढ़ी : मंगतू का गणित

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मैं हमेशा स्कूटर में पेट्रोल 100 रूपये का डलवाता हूँ. अक्सर मेरे साथ मंगतू होता है और वह देखता रहता है. कल से पेट्रोल की कीमत में वृद्धि की खबर वह सुन रहा था और परेशान हो रहा था (हर आम आदमी की तरह).  आज भी वह मेरे साथ जा रहा था, रास्ते में स्कूटर में रिजर्व लग गया और अगले पेट्रोल पम्प पर मैं 100 रूपये का पेट्रोल डलवाया. मंगतू चुपचाप देखता रहा, पर घर आकर बोला :

"ये टी वी वाले और अखबार वाले झूठ कह रहे है."

मैनें पूछा "क्या झूठ कह रहें हैं अखबार और टी वी वाले?"

मगतू : अरे! यही कि पेट्रोल की कीमत में भारी बढोत्तरी हुई है.

मैं        : पर बढोत्तरी तो हुई है.

मंगतू : अगर बढोत्तरी हुई होती तो आपको पैसे ज्यादा देने होते, पर आपने इस बार भी तो 100 रूपये ही दिये हैं, फिर कीमत कहाँ बढ़ी ????

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विश्व रेडक्रास दिवस

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विश्व रेडक्रास दिवस पर कविता पाठ 7 मई 2010

हिन्दी दिवस : काव्य पाठ

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हिन्दी दिवस 2009

राजस्थान पत्रिका में 'यूरेका'

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