विगत दिनों मैं अपने गृहनगर वाराणसी गया हुआ था. वहाँ से वापसी 'गरीब रथ' ट्रेन से हुई. मुझे साईड मिडल बर्थ मिला. अब तक का सबसे दुरूह यात्रा साबित हुई. साईड मिडल बर्थ मायने खुद को डिब्बे में कैद करने जैसा था. शायद यह इकलौता ट्रेन है जिसमें साईड-मिडल बर्थ अब तक कायम है. अस्तु, कहने को तो यह वातानुकूलित ट्रेन है पर इसमें अन्य ट्रेनों के वातानुकूलित बोगी में मिलने वाली सुविधाएँ (!) यहाँ नदारद है. अन्य ट्रेनों में जहाँ बिछाने को बिस्तर और ओढने को कम्बल आदि सभी को उपलब्ध होता है, इस ट्रेन में नहीं है. बिस्तर अलग से किराया देने पर मिलता है. किराया देकर भी यह बिस्तर पा लेना प्लासी युद्ध जीतने जैसा ही दुरूह कार्य है, क्योकि यह भी सीमित मात्रा में उपलब्ध है. कुछ दृश्य मैनें इस जद्दोजहद का मोबाईल कैमरे से लिया है :
आखिर ऐसा क्यों ?
11 comments:
Laalooo se agar Ameer Rath kee Ummeed rakhoge to Galtee kiskee hai ?
गरी 'बी' की पूरी कहानी
पढ़ोगे तो अमी 'री' को
याद आएगी नानी
नानी की कहानी में
नहीं होती थीं रेलें
अविनाश मूर्ख है
इसलिए आप कुछ भी कह लें
आओ बंधु, गोरी के गांव चलें
अब रथ है तो क्या हुआ ...है तो गरीब ही बेचारा ...
आधे दाम में ए सी का सफ़र ऐसा ही होगा.. यह आर्थिक गणना की बात है..
टिकट मूल्य कम दिखाने की कवायद है
गरीबों की जो नियति है .. गरीब रथ इससे कैसे बचा रह सकता है ??
कुछ महीनो पहले हमने भी यही गलती कर ली थी दिल्ली से वाराणसी जाते समय समस्या थी की दूसरी ट्रेन में टिकट नहीं मिला ए सी ट्रेन के नाम पर कलंक है | बिस्तर के लिए मार मारी तो आपने देखी ही मै भी नहीं ले सकी पर लेना जरुरी था क्योकि मेरे साथ मेरी तीन साल की बेटी थी | सबके जाने के बाद झगडा करके दो चद्दरे ली जो वो दे नहीं रहा था | इसे कहते है अंग्रेजी में बेफकुफ़ बनाना |
kyonki gareebon ke saath majak karna hamari sarkaron ka shagal hai..... gareeb janta ko sunhare khwabon ka manjar dikhna jo hai...
आदरणीय वर्मा जी,
आपका अनुभव एक आम आदमी का अनुभव है !
कई कई बार तो लगता है कि ये सारी सुविधाएं हमारे लिए बनी ही नहीं हैं !
धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
इतनी रशा कसी में भी आपने कैमरा चला ही दिया !
यह बहुत पराक्रम का काम था !
साइड मिडिल बर्थ एक राष्ट्रेय मूर्खता है
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