Sunday, June 27, 2010

एक गाँव मर रहा है ....

पिछले दिनों मैं अपने पैतृक नगर वाराणसी गया हुआ था. वाराणसी में मेरा गाँव शहर से सटा हुआ वाराणसी स्टेशन से लगभग 3 किमी की दूरी पर है. हर बार जब भी मैं अपने गाँव से लौटता हूँ तो मन में वितृष्णा और विषाद लेकर लौटना पड़ता है क्योंकि एक सलोने और सुन्दर गाँव को मरते देखने जैसी अनुभूति पैदा होती है. शहर के नज़दीक होने के कारण और जनसंख्या के दबाव के कारण फसल उगाते गाँव को अपना स्वरूप बदलना पड़ रहा है. ईटों और कंक्रीटों का आक्रमण मासूम खेतों को झेलना पड़ रहा है और बने अधबने मकानों का एक जंगल खड़ा होता जा रहा है. और फिर संस्कृति के अपमिश्रण से अजीब सी तमाम विसंगतियों से युक्त संस्कृति का जन्म होता जा रहा है. कहीं कहीं फसलों की हरियाली भी नज़र आती है पर निकट भविष्य में ही ये भूतकाल के दृश्य होने जा रहे हैं अपने घर के छत से एक विहंगम दृश्य लिया है आप भा अवलोकन करें :

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उफ ! लगता है अब तक मैनें अपने गाँव का नाम नहीं बताया है. मेरे गाँव का नाम फुलवरिया है. यह लहरतारा (कबीर दास जी वाले) के पास स्थित है. इसके पूर्व में '39 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर' है तो पश्चिम में 'वरूणा नदी' बहती है. कुछ दृश्य वरूणा नदी का भी :

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यह वही वरूणा नदी है जिसके नाम को समाहित करते हुए शहर का नाम 'वाराणसी' पड़ा है. वरूणा + अस्सी = वाराणसी (अस्सी गंगा नदी का सुप्रसिद्ध घाट)

आम नदियों सा इस नदी का भी हश्र हो रहा है देखे :

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प्रदूषण का ज़हर इसे भी निगलने जा रहा है.

अब मेरे गाँव का सूरज कुछ इस तरह निकलता है

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कुछ और चित्र देखे :

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जी हाँ लंगोट भी खो गया है. फिर मैं पीछे क्यूँ रहूँ, लो जी मैं भी गदा उठा लिया :

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और अंत में विषादों को सहेजे इसी समानांतर पथ पर 'गरीब रथ' से वापस आ गया.

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अगली पोस्ट : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के बारे में शीघ्र ही

 

6 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ganv se garibrath tak,

bahut badhiya varma ji.

ram ram

शरदिंदु शेखर said...

तस्वीरों के सहारे सहज ही मिटते गांव का दर्द जाहिर कर दिया आपने.....

राजीव तनेजा said...

शहरीकरण की अंधी दौड में पूरे भारत का यही हाल होता जा रहा है....

निर्मला कपिला said...

raajeev jee sahee kah rahe haiM magar samay ke saath badalaav to kudarat kaa bhee niyam hai| dhanyavaad.

Satish Saxena said...

अब तो गाँव पर कोई लिखता ही नहीं, सब भूलते जा रहे हैं असली भारत को !

girish pankaj said...

aapne apne gaanv ko yaad kiyaa. ab to gaanv vaise nahi rahe.mera janm banaras mey huaa isliye abnaras aur aaspaas ki cheeze bhi achchhi lagati hai. aap gaanv se jude huye hai, yah badee baat hai. ab jo gaanv se nikalataa hai, bhool hi jataa hai.

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