Friday, May 21, 2010

आततायी शहर की तरफ आ रहे हैं ~~

आज अपनी एक व्यंग्य कविता आपको सुना रहा हूँ. कविता का शीर्षक है :

आततायी शहर की तरफ़ आ रहे हैं --

 

 

और यह मेरी तलवार जो सिरहाने रखकर सोया था .................

9 comments:

दिलीप said...

waah Verma ji bada karara vyang hai...

Udan Tashtari said...

वाह, बहुत उम्दा रहा आपके स्वर में सुनना!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मज़ा आ गया सुनकर...

अजय कुमार said...

अच्छी सस्वर रचना

honesty project democracy said...

बहुत ही अच्छी और हौसला अफजाई करने वाली कविता / आज ऐसे ही विचारों की जरूरत है /एम. वर्मा जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

ZEAL said...

Nice creation !
Beautifully presented !

Kumar Jaljala said...

असली मीनाकुमारी की रचनाएं अवश्य बांचे
फिल्म अभिनेत्री मीनाकुमारी बहुत अच्छा लिखती थी. कभी आपको वक्त लगे तो असली मीनाकुमारी की शायरी अवश्य बांचे. इधर इन दिनों जो कचरा परोसा जा रहा है उससे थोड़ी राहत मिलगी. मीनाकुमारी की शायरी नामक किताब को गुलजार ने संपादित किया है और इसके कई संस्करण निकल चुके हैं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी ये कविता सुन कर याद आ गया कि दिल्ली अभी दूर है.....

बहुत खूबसूरती से कही है आपने अपनी बात

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सॉरी, बहुत समय से मेरे कंप्यूटर का ऑडियो खराब है !

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