Thursday, April 29, 2010

और वे सत्संग में चली गयी ---- लघुकथा

वे बेचैनी से कमरे में टहल रहीं थी. अभी तक फोन क्यों नहीं आया? पता नहीं प्रबन्ध हुआ कि नहीं. "बेटा दो साल से फेल हो रहा है. चिंता हो किसी को तब न ! अबकी तो कुछ भी करके पास करवाना ही होगा."

ट्रिंग -- ट्रिंग

"हलो, क्या हुआ?"

"हो गया?"

"अच्छा ! कैसे?"

"स्कूल के चपरासी से और स्कूल के अध्यापक से बात हो गयी है. किताबे पहुँच जायेंगी. चिंता मत करो."

"अरे वाह ! ये तो बहुत अच्छा हुआ, मैं तो चिंता से घुली जा रही थी. भगवान भला ही करता है. अब चिंता दूर हुई. अब निश्चिंत होकर सत्संग में जा पाऊँगी."

------ और वे सत्संग में चली गयी.

13 comments:

vandana gupta said...

ek sochniya prashn ????

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक!

Razia said...

गम्भीर चोट करती लघुकथा
विचारणीय

sonal said...

गागर में सागर ...कम शब्दों में बहुत कुछ कह गए

संगीता पुरी said...

सटीक कटाक्ष ..

Randhir Singh Suman said...

nice

अविनाश वाचस्पति said...

अभी की निश्चिंतता भविष्‍य की चिंता बन जाएगी क्‍योंकि लगता नहीं कि वे सत्‍संग में गई होंगी या हो भी सकता है कि झूठसंग से सत्‍संग की ओर कदम बढ़ ही गए हों।

डॉ टी एस दराल said...

सत्संग ! हा हा हा !
बच्चे को हरयाणा के स्कूल में पढ़ाते तो पहली बार में ही पास हो जाता । :)

विनोद पाराशर said...

आज पता लगा,जॆसी धारदार कविता लिखते हो,वॆसे ही मन को शांत रखने के उपाये भी बताते हो.सरकार भी व्यर्थ ही चिंता करती हॆ कि-’सर्व-शिक्षा अभियान’कॆसे पूरा होगा.जहां ऎसे जुगाडी अध्यापक ऒर चपरासी मॊजूद हॆं-वहां कोई छात्र कॆसे फेल हो सकता हॆ?

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत बढ़िया बात कह गये आप अपनी इस कहानी के माध्यम से.. बधाई

Udan Tashtari said...

बड़ा गहरा कटाक्ष किया है आपने!

शरद कोकास said...

अच्छी लघुकथा ।

Jyoti said...

"बेटा दो साल से फेल हो रहा है. चिंता हो किसी को तब न,..............
बहुत बढ़िया .............

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