वे बेचैनी से कमरे में टहल रहीं थी. अभी तक फोन क्यों नहीं आया? पता नहीं प्रबन्ध हुआ कि नहीं. "बेटा दो साल से फेल हो रहा है. चिंता हो किसी को तब न ! अबकी तो कुछ भी करके पास करवाना ही होगा."
ट्रिंग -- ट्रिंग
"हलो, क्या हुआ?"
"हो गया?"
"अच्छा ! कैसे?"
"स्कूल के चपरासी से और स्कूल के अध्यापक से बात हो गयी है. किताबे पहुँच जायेंगी. चिंता मत करो."
"अरे वाह ! ये तो बहुत अच्छा हुआ, मैं तो चिंता से घुली जा रही थी. भगवान भला ही करता है. अब चिंता दूर हुई. अब निश्चिंत होकर सत्संग में जा पाऊँगी."
------ और वे सत्संग में चली गयी.
13 comments:
ek sochniya prashn ????
विचारोत्तेजक!
गम्भीर चोट करती लघुकथा
विचारणीय
गागर में सागर ...कम शब्दों में बहुत कुछ कह गए
सटीक कटाक्ष ..
nice
अभी की निश्चिंतता भविष्य की चिंता बन जाएगी क्योंकि लगता नहीं कि वे सत्संग में गई होंगी या हो भी सकता है कि झूठसंग से सत्संग की ओर कदम बढ़ ही गए हों।
सत्संग ! हा हा हा !
बच्चे को हरयाणा के स्कूल में पढ़ाते तो पहली बार में ही पास हो जाता । :)
आज पता लगा,जॆसी धारदार कविता लिखते हो,वॆसे ही मन को शांत रखने के उपाये भी बताते हो.सरकार भी व्यर्थ ही चिंता करती हॆ कि-’सर्व-शिक्षा अभियान’कॆसे पूरा होगा.जहां ऎसे जुगाडी अध्यापक ऒर चपरासी मॊजूद हॆं-वहां कोई छात्र कॆसे फेल हो सकता हॆ?
बहुत बढ़िया बात कह गये आप अपनी इस कहानी के माध्यम से.. बधाई
बड़ा गहरा कटाक्ष किया है आपने!
अच्छी लघुकथा ।
"बेटा दो साल से फेल हो रहा है. चिंता हो किसी को तब न,..............
बहुत बढ़िया .............
Post a Comment