उस दिन बैठी थी तुम यही ... थोड़ा सा फासला था हमारे और तुम्हारे बीच. मैं न जाने कब से उस फासले को कम करने की कोशिश कर रहा था. पहाड़ सा यह फासला ... टूटता हुआ प्रतिपल हौसला मेरा. घास की हरीतिमा के बीच रह रह कर चहकती हुई तुम .... पेड़ के गिरते पत्ते सा मैं तुम्हारी मासूमियत को स्पर्श कर लेने को उतावला या फिर बावला. अनगिन सम्वादों के बीच सम्वादहीन हमारे अस्तित्व. सब कुछ तो कहा था तुमने, पर वो नहीं जो सुनने के लिये मेरे कर्ण आतुर थे. शायद तुमने देखा ही नहीं था उस परिन्दे को जिसकी उड़ान नीले आसमान की छत्रछाया में बदस्तूर जारी थी. मैं आबद्ध था तुम्हारे तिलिस्म में. याद है मुझे आज भी, किस कदर तुम समेट लेती थी उस पेड़ के गिरते पत्तों को जिसके नीचे हम बैठे थे. मैं इंतजार करता रहा शायद तुम्हें मेरी भावनाओ की आहट मिले और शायद तुम इन्हें भी समेटने की कोशिश करो. पर नही ....
वक्त भी नासमझ सा व्यवहार करता है जब बीतना होता है तो बीतता ही नहीं और जब ठहरने की आवश्यकता होती है तो भागने की तैयारी कर लेता है. तुम्हें शायद ढलती शाम का इलहाम हो गया था. अचानक ही तो तुम उठी थी, जाने के लिये. शायद यह मेरे लिये अप्रत्याशित था --- शायद यह मेरे लिये ------- और फिर अनायास बिना किसी मंसा के मैनें तुम्हारा हाथ थाम ही तो लिया था. और फिर दर्द से तुम छटपटा उठी थी. पता नहीं कौन सा दर्द ज्यादा भारी था , मेरे अप्रत्याशित व्यवहार का दर्द या हाथ थामने से तुम्हारी कलाई पर इन्द्रधनुष रचते चूडियों में से एक चूड़ी टूटने और कलाई में चुभ जाने का दर्द. रक्त की बूँद चुहचुहा आयी थी तुम्हारी कलाई पर --- मुझे पता है तुमने न जाने कैसे समेट लिया था बरसने को आतुर बादलों को पलकों के आँचल में. और तुम चली गयी थी मुझे वहीं छोड़कर ---
मैं जानता हूँ वह चूड़ी का वह किरंच बहुत छोटा था. इतना भी नहीं था कि उसके दिये जख्म को सहा न जा सके तभी तो क्षणांश मे ही तुमने स्वयं को सहज कर लिया था. तुम चली गयी ---- शायद तुम्हारी कलाई पर चुभन के निशान वक्त के मरहम ने मिटा दिया होगा, पर वह किरंच आज भी मुझे चुभ रहा है -------
10 comments:
bahut acha
shkaher kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
virah ka itna samvedansheel varnan...prarthna hai agar ye vastavikta hai to apka prem apko wapas mil jaye...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
संस्मरणात्मक रूप से यह कहानी बहुत अच्छी लगी.....
सुन्दर रूमानियत से भरी रचना. सुन्दर अभिव्यक्ति और शैली
बहुत अंतरंग, हृदयस्पर्शी एवं आत्मीयता से परिपूर्ण संस्मरण ! अच्छा लगा ! बधाई और शुभकामनायें !
वाह ..क्या बात है...
प्रेम पगी यादें..
सुन्दर...
पुरानी यादों के अहसास कई बार जीवन भर सहारा देते हैं वर्मा जी !
हृदयस्पर्शी परिपूर्ण संस्मरण ..............
ye rachna mujhe bhi bahut pasand aai
bhavnaon ko bahu thi sundarta se saheja hai.
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