Monday, May 31, 2010

इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का ~~

कूड़े के ढेर से जीवन चुनता है

दिन भर खुद का बोझ ढोता है

इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का

उफ ! यहाँ तो बचपन ऐसे सोता है

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चित्र : मोबाईल कैमरे से

20 comments:

सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) said...

दिल को छू लेनेवाली प्रस्तुति..आभार !

एक बेहद साधारण पाठक said...

बहुत प्रभावशाली रचना

पवन धीमान said...

बहुत मार्मिक और संवेदनशील प्रस्तुति.

honesty project democracy said...

वाह वर्मा जी ,बहुत बढ़िया प्रस्तुती ,इंसानियत की दर्दनाक अवस्था का चित्रण आपके सोच और कोशिस करने की लालसा को दर्शाता है ,जिससे कुछ सुधार हो सके,कास सभी ऐसा सोचते ?

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

प्रभावशाली अभिव्यक्ति

राम राम

Udan Tashtari said...

मार्मिक!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

उफ़! बहुत ही मार्मिक कविता.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक कटु सत्य को दर्शाती मार्मिक प्रस्तुति

Shah Nawaz said...

चित्रों और शब्दों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया आपने. आज विकास की राह पर अग्रसर उपभोक्तावाद की काली तस्वीर दिखा दी है आपने.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सच कहा !

RAJNISH PARIHAR said...

उफ़! बहुत ही मार्मिक कविता.....

Ra said...

मार्मिक, विचारणीय !

संजय भास्‍कर said...

मार्मिक और संवेदनशील प्रस्तुति.

दिलीप said...

maarmik...

दिलीप said...

maarmik...

स्वप्न मञ्जूषा said...

ghazab..!!

राज भाटिय़ा said...

क्या यह सब उन नेताओ ओर सरकारी अफ़सरो , रिश्वत खोरो को नही दिखता जो इन सब का हक मार कर तंद फ़ुलाये महंगी महंगी कारो मै घुमते है

Dev K Jha said...

कडवी सच्चाई...

कडुवासच said...

...अदभुत अभिव्यक्ति!!!

मीनाक्षी said...

अभावों से घिरा बचपन मन को पीड़ा देता है लेकिन उस सख्त बिस्तर पर नींद कितनी मीठी होगी यह वही बता सकता है...

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