Sunday, July 1, 2012

और दर्पण टूटने से बच गया … (लघुकथा)



वह दर्पण के सामने खड़ी हो गयी और बोली, “बता दर्पण ! मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने उसे निहारा और बोला, “आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
उसे गहन संताप हुआ और उसने क्रोधित होकर एक पत्थर उठा लिया और बोली, “बता दर्पण ! अब तूं मेरी ख़ूबसूरती के बारे में बता'”
दर्पण ने पत्थर देख लिया था, जोर से कहा, “आप बहुत खूबसूरत हैं" फिर धीरे से बोला “पर आपसे भी खूबसूरत लोग हैं इस नगर में"
वह प्रथम वाक्य सुनकर इतना विह्वल हुई की द्वितीय वाक्य को सुनी ही नही. और बेचारा दर्पण झूठ बोलने और टूटने से बच गया.




17 comments:

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

बहुत प्यारी, यथार्थ को बांचती रचना.

ZEAL said...

waah...lovely !

रविकर said...

प्रभावी लघु कथा |
एक कठिन विधा ||
आभार सर जी ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छा हुआ जो दूसरा वाक्य नहीं सुना ... अच्छी लघु कथा

सुनीता जोशी said...

अच्छी लघु कथा है ''दर्पण ने सच भी बोल दिया और टूटनें से भी बच गया । सच्ची और अच्छी लघु कथा है । '' सुनीता जोशी ''

वाणी गीत said...

सच को सलीके से बोलना बेहतर है !

Pallavi saxena said...

अच्छा हुआ जो दूसरी बात नहीं सुनी ...

शिवनाथ कुमार said...

अच्छी लघु कथा ....
साभार !!

Suman said...

जो चाहता है वही देखना सुनना पसंद करता है मनुष्य !

kavita verma said...

achchhi laghukatha..

Unknown said...
This comment has been removed by a blog administrator.
सुरभि said...

man jo sunna chahta hai uske baad aage kuch nahi sunta...b !ahut dino baad aapke blog par ayai hoon...aabhar

Dhwani said...


सुन्दर बात कह दी आपने। इंसान तारीफ़ का सदा प्यासा है - और यह ही लालच उसे पल भर में अंधा कर देता है।

Asha Joglekar said...

सच सुनने की ताब सब में कहाँ वे विरले ही होते हैं जो यह कर सकें। बहुत सुंदर कथा।

Anonymous said...

बहुत बहुत अच्‍छी रचना की प्रस्‍तुति।

Unknown said...

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कविता रावत said...

दर्पण झूठ न बोले
बहुत खूब!

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