कहीं जाते-आते हम यह दृश्य अक्सर देखते हैं. कभी-कभी हम इसका हिस्सा बनते हैं और इन बहुरूपियों के गिरफ्त में आ जाते है. यह तिलिस्म ही तो है जो सब कुछ जानते-समझते हम इनके शिकार बन जाते है. आखिर यह तिलिस्म कब टूटेगा ????
नहीं किसी का नीड़
क्यो है इतनी भीड़
लोगों की बेबसी भुनाना है
मकसद केवल कमाना है
यूँ ही नहीं गुर्गों को पाला है
तिलिस्म अब चलने वाला है
बड़े जतन से चारा डाला है
देखो ये मेरी कार्यशाला है.
चित्र मोबाईल कैमरे से लिया गया है.
6 comments:
इस मजमे का रहस्य भी तो बताइये ?
लाजवाब लगा पढ़ना
Andhvishwas ko chapat lagati rachna pasand aayi Verma sir..
ये क्या चल रहा है?
शायद धर्म के नाम पर लोगों को भडकाने वाले गरीब लोगों से इस रचना का भाव है। शुभकामनायें
आखिर यह तिलिस्म कब टूटेगा ????
नहीं किसी का नीड़ क्यो है इतनी भीड़
लोगों की बेबसी भुनाना है
मकसद केवल कमाना है
यूँ ही नहीं गुर्गों को पाला है
तिलिस्म अब चलने वाला है
बड़े जतन से चारा डाला है
देखो ये मेरी कार्यशाला है.
bahut khoob likha hai .
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