Thursday, June 10, 2010

न अगाड़ी न पिछाड़ी ... उफ्फ !! ये नई गाड़ी (लघुकथा)

मार साले को .... अबे तेरे बाप की गाड़ी है जो खरोच मार दिया. पकड़ लो साले को !

और मैं भी नई चमचमाती गाड़ी को देखने लगा. खरोंच को भी देखने की जिज्ञासा हुई. पूरी गाड़ी देखा पर खरोंच नजर नही आई.

उधर उस आटो चालक को पकड़ कर पीटने का भी कार्यक्रम शुरू हो चुका था. विधिवत एक पकड़े हुए था और दूसरा मार रहा था.

मुझसे रहा नहीं गया, बोल ही तो दिया : भाई साहब ! पर गाड़ी पर कोई खरोच तो नहीं आई है.

उसने घूरकर मुझे देखा और बोला : आपसे मैने पूछा तो नहीं. खरोच नहीं लगी है पर इतने नजदीक से यह निकला था अगर खरोंच लग जाती तो, आज ही तो नई गाड़ी निकलवाकर ला रहा हूँ.

और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.

24 comments:

संगीता पुरी said...

और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.
बहुत सही !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब इस मानसिकता को क्या कहें? अच्छी लगी ये लघु कथा

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है .... मानवता जैसे मर चुकी है ..... आभार

डॉ टी एस दराल said...

दिल्ली की सड़कों पर इस तरह के पहलवान बहुत नज़र आते हैं ।
शायद दिमाग में भूसा भरा होता है ।

Gyan Darpan said...

ऐसी मानसिकता अक्सर वाले अक्सर सड़कों पर नजर आ जाते है |

विनोद कुमार पांडेय said...

aise logo se desh bhara pada hai bada hi dukhad aisa drishy hota hai bade log kamjor logo ko daba dete hai...badhiya sansmaaran..dhanywaad varma ji

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पिछ्ले कई बार से जब भी मै नई कार लेता हू तो कोइ अच्छी तरह से ब्लेड से खरोच मारता है . अगर मुझे वह मिल गया तो उसका हालचाल जरुर लुन्गा

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पिछ्ले कई बार से जब भी मै नई कार लेता हू तो कोइ अच्छी तरह से ब्लेड से खरोच मारता है . अगर मुझे वह मिल गया तो उसका हालचाल जरुर लुन्गा

honesty project democracy said...

ऐसे दिमाग में खरोंच वाले का समझो पूरे परिवार पर ही खरोंच लगने वाला है ,गारी भी किसी को ठग या किसी को लूटकर ही खरीदा होगा तभी शुरुआत में ही ऐसे कुकर्म को करने पे मजबूर होना परा ,प्रकृति हर चीज के न्याय के लिए कारण जरूर पैदा करता है |

Shah Nawaz said...

"ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में"

Sahi Kaha. :-)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

वाकई में बहुत सही.... खरोंच तो दिमाग में है....

माधव( Madhav) said...

its very common scene in delhi.Now a days cars are more important than human life

दिलीप said...

badhiya sirji...

Jandunia said...

इस पोस्ट के लिेए साधुवाद

अजित गुप्ता का कोना said...

जब भौतिकवाद हम पर हावी हो जाता है तो मानवता ह‍मेशा ही दम तोड़ देती है।

पवन धीमान said...

बहुत मर्मस्पर्शी लघु कथा...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अच्छी असरकारक लघुकथा

आभार

आपकी चर्चा यहां भी है

Razia said...

सुन्दर लघुकथा...

Anonymous said...

हद है दबंगई की

रंजना said...

सही कहा आपने...दिमाग के खरोंच ही तो सब कारणों की जड़ हैं...

सुन्दर लघुकथा...

कविता रावत said...

और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.
....Durbhagyapurn Mansikta ka sateek chitran

Shekhar Kumawat said...

NICE

संजय भास्‍कर said...

बहुत मर्मस्पर्शी लघु कथा...

दीपक 'मशाल' said...

ऐसा कितनी बार होते देखा है.. कुछ लोगों की बेवकूफी भरी मानसिकता को उजागर किया आपने... बेहतरीन

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