मार साले को .... अबे तेरे बाप की गाड़ी है जो खरोच मार दिया. पकड़ लो साले को !
और मैं भी नई चमचमाती गाड़ी को देखने लगा. खरोंच को भी देखने की जिज्ञासा हुई. पूरी गाड़ी देखा पर खरोंच नजर नही आई.
उधर उस आटो चालक को पकड़ कर पीटने का भी कार्यक्रम शुरू हो चुका था. विधिवत एक पकड़े हुए था और दूसरा मार रहा था.
मुझसे रहा नहीं गया, बोल ही तो दिया : भाई साहब ! पर गाड़ी पर कोई खरोच तो नहीं आई है.
उसने घूरकर मुझे देखा और बोला : आपसे मैने पूछा तो नहीं. खरोच नहीं लगी है पर इतने नजदीक से यह निकला था अगर खरोंच लग जाती तो, आज ही तो नई गाड़ी निकलवाकर ला रहा हूँ.
और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.
24 comments:
और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.
बहुत सही !!
अब इस मानसिकता को क्या कहें? अच्छी लगी ये लघु कथा
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है .... मानवता जैसे मर चुकी है ..... आभार
दिल्ली की सड़कों पर इस तरह के पहलवान बहुत नज़र आते हैं ।
शायद दिमाग में भूसा भरा होता है ।
ऐसी मानसिकता अक्सर वाले अक्सर सड़कों पर नजर आ जाते है |
aise logo se desh bhara pada hai bada hi dukhad aisa drishy hota hai bade log kamjor logo ko daba dete hai...badhiya sansmaaran..dhanywaad varma ji
पिछ्ले कई बार से जब भी मै नई कार लेता हू तो कोइ अच्छी तरह से ब्लेड से खरोच मारता है . अगर मुझे वह मिल गया तो उसका हालचाल जरुर लुन्गा
पिछ्ले कई बार से जब भी मै नई कार लेता हू तो कोइ अच्छी तरह से ब्लेड से खरोच मारता है . अगर मुझे वह मिल गया तो उसका हालचाल जरुर लुन्गा
ऐसे दिमाग में खरोंच वाले का समझो पूरे परिवार पर ही खरोंच लगने वाला है ,गारी भी किसी को ठग या किसी को लूटकर ही खरीदा होगा तभी शुरुआत में ही ऐसे कुकर्म को करने पे मजबूर होना परा ,प्रकृति हर चीज के न्याय के लिए कारण जरूर पैदा करता है |
"ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में"
Sahi Kaha. :-)
वाकई में बहुत सही.... खरोंच तो दिमाग में है....
its very common scene in delhi.Now a days cars are more important than human life
badhiya sirji...
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
जब भौतिकवाद हम पर हावी हो जाता है तो मानवता हमेशा ही दम तोड़ देती है।
बहुत मर्मस्पर्शी लघु कथा...
अच्छी असरकारक लघुकथा
आभार
आपकी चर्चा यहां भी है
सुन्दर लघुकथा...
हद है दबंगई की
सही कहा आपने...दिमाग के खरोंच ही तो सब कारणों की जड़ हैं...
सुन्दर लघुकथा...
और मुझे सहसा नज़र आने लगा ख़रोंच गाड़ी पर नहीं उसके दिमाग में.
....Durbhagyapurn Mansikta ka sateek chitran
NICE
बहुत मर्मस्पर्शी लघु कथा...
ऐसा कितनी बार होते देखा है.. कुछ लोगों की बेवकूफी भरी मानसिकता को उजागर किया आपने... बेहतरीन
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