Tuesday, May 18, 2010

धरा को तुम एक दरख़्त दो~

धरा को तुम एक दरख़्त दो

दरख़्त तुम्हें विस्तृत धरा देगा

मृदु एहसास देगा, विश्वास देगा

आशियाना तुमको ये हरा देगा

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14 comments:

shikha varshney said...

सच्ची बात ...गागर में सागर भरा है आपने.

माधव( Madhav) said...

सही कहा , अच्छा सन्देश


http://madhavrai.blogspot.com/

दीपक 'मशाल' said...

कहाँ से इतने खूबसूरत चित्र मिले सर मुझे भी बताएं... और आपका मुक्तक तो बस पूछिए ही मत..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Wah-waah !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खरी बात....बहुत अच्छा भाव

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा वर्मा जी ।

बाल भवन जबलपुर said...

वर्मा साहब बेहतरीन लगी पोस्ट

दिलीप said...

kam shabdo me ek pate ki baat kahi...

Unknown said...

सुन्दर प्रस्तुति....जल,जंगल,जमीन को बचाने हेतु किया गया हर प्रयास सार्थक.......साधुवाद।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...

RAJNISH PARIHAR said...

खूबसूरत चित्र,बहुत अच्छा भाव..शायद अब हम वृक्षारोपण पर ध्यान दें...

मनोज कुमार said...

यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।

kunwarji's said...

waah!
laajawaab tareeka laajawaab baat kehne kaa...

kunwar ji,

दीपक 'मशाल' said...

वैवाहिक वर्षगाँठ पर बधाई सर..

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